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नानी का घर

 जब हम छोटे थे तो गर्मियों की छुट्टी मे(मैं, बहन, मम्मी) अहमदाबाद नानी के घर जाते थे ओर हमारी नानी का घर एक गली मे था.वहाँ मेरे बहुत से मित्र थे जिनके साथ मैं सुबह - शाम खेलता रहता, गप शप करता और उसी गली मे अच्छे पडोसी भी थे ओर बुरे भी.      हम उस गली मे क्रिकेट या कोई अन्य खेल खेलते तो हमारा खेलना बगल वाले को पसंद नहीं था ओर वे हमेशा एक ही डायलॉग मारते कि "मेरा पोता पढ़ रहा है उसको तुम्हारी आवाज़ से परेशानी होती है इसलिए यहाँ मत खेलो. हम सब यह सोचते कि गर्मियों की छुटियो मे कोन पढ़ाई करता है?       वह उम्र मे काफ़ी बड़ी थी ओर खड़ूस भी थी इसलिए उनसे कोई बहस नहीं करता पर हां मेरे नानी के घर के ठीक सामने पलक मौसी रहती थी वह बडी अच्छी थी हमेशा हमें सहयोग करती.जब वे घर पे होते थे तो हम सब बिंदास होके खेल खेलते ओर वो खड़ूस वरिष्ठ हमे टोकने आ जाती थी पर उस समय मौसी भी आ जाती ओर उन दोनों के बीच बोला चाली शुरू हो जाती कि "मेरे घर के सामने कोई नहीं खेलगा तो मौसी कहती "कि बच्चे तो यही खेलेंगे जो करना है कर लो" और यह एक बार नहीं होता, बल्कि हफ्ते मे 2 से 3 बार झगड़े होते है और आखिर का

एक रवि था खुश सा

 मैं अपनी ज़िन्दगी मे बहुत खुश था! ना किसी बात की कोई समस्या थी, ना ही दिल पे कोई बात लेता था, बस! अपने तरीके से जी रहा था! अच्छा खासा कमा रहा था, उसमे से थोड़े पैसे खुद के लिए रखता बाकी अपने घर दे देता! खा पीकर मौज करता! हाँ, वैसे मैं परवाह तो किसी की नहीं करता था पर अपने माता - पिता की परवाह बहुत करता था! उनसे नाही मैंने कभी ऊँची आवाज़ मे बात की है और नाही उनका कभी अनादर किया!      मेरी माताजी को मेरी काफ़ी चिंता रहती थी, वह दिन - रात यही सोचती रहती थी कि रवि का आगे क्या होगा, इसका भविष्य कैसा होगा, क्या इसको एक अच्छी पत्नी मिलेगी जो इसका ख्याल रख सकेगी या ज़िन्दगी भर मेरा रवि ऐसे ही रहेगा! दूसरी तरफ मेरे पिताजी! वे मुझे लेकर इतने गंभीर नहीं थे, वे खुद खुश रहते और मुझे भी खुश रहने देते थे! मेरी और मेरे पिताजी की इतनी बनती थी कि हमें कही भी जाना हो तो साथ मे जाते थे अगर सीधे तौर पर कहू तो, मेरे पिताजी अपनी पत्नी को घुमाने कम और मुझे घुमाने ज्यादा लेकर गये है! इसके अलावा जब मै छोटा था तब मै और पिताजी एक ही थाली मै खाना खाया करते थे, एक साथ मे सोते और हर सुबह मेरे पिताजी मुझे नहलाते थे, मेरे

एक ईमानदार व्यक्ति

 दो एक साल पहले की बात है जब मैं अपने अंकल के यहां जॉब करता था!       एक बार मुझे काम के सिलसिले मे विजयवाडा जाना था और मैं जब भी काम के लिए बाहर जाता हूँ,तो तीन बैग लेकर निकलता हूँ जैसे कि एक बैग कपडे का,दूसरा सैंपल बैग और तीसरा जो कि छोटा होता है जिसमे पैसे, सैंपल मोबाइल और आर्डर बुक वगैरह होती है. समय पर विजयवाडा पहुँच गया था और यही रात को मुझे हैदराबाद के लिए निकलना था 8:30 बजे की गाड़ी थी और यहां मुझे रात तक सारे काम भी निपटाने थे जैसे कि शोध जमा करना,ऑर्डर लेने वगैरह वगैरह.        शाम होने को आ गयी थी और जो मेरे काम थे वह भी सारे लगभग हो गये थे और ठीक 7:00 एक बजे अंकल का फोन आया और कहा कि तेरे पास जितने चेक इकट्ठा हुए वह सब मुझे कुरियर कर दे. मैंने कहा ठीक है कर देता हूं.तो मैं जिस मार्किट मे था वहां हमारा एक व्यापारी थे तो वही बैठकर कूरियर तैयार किया,फिर मैंने उनको पूछा की यहाँ कूरियर वाला कहाँ पर है? तो उन्होंने कहाँ कि बस यहाँ से थोड़ी दुरी पर जाओगे तो एक बड़ी उम्र वाला व्यक्ति टेबल लगाकर बैठे होंगे.मैंने कहा ठीक है तो मै वहा गया और उन कूरियर वाले को कूरियर दे दिया.जो मेरा छोटा